*बौद्ध संगीति*
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इतिहास : 4 बौद्ध संगीति/शासनकाल/स्थान/अध्यक्ष
बौद्धधर्म में 4 बौद्ध संगीति हुई थी। यह किस समय, किसके शासनकाल में, किस स्थान और इनके अध्यक्ष कौन थे
ट्रिक- RVPK/AKAK
.
[1]. प्रथम बौद्ध संगीति (483 ई.पू.)
अजातशत्रु (शासनकाल)
राजगृह (स्थान)
महाकश्यप (अध्यक्ष){
[2]द्वितीय बौद्ध संगीति (383 ई.पू.)
कालाशोक (शासनकाल
वैशाली (स्थान)
सबाकामी (अध्यक्ष)
[3]तृतीय बौद्ध संगीति (255 ई.पू.)
अशोक (शासनकाल)
पाटलिपुत्र (स्थान)
मोग्गलीपुत्त तिस्स (अध्यक्ष)
चतुर्थ बौद्ध संगीति (ई. की प्रथम शताब्दी)
कनिष्क (शासनकाल)
कुण्डलवन (स्थान)
अश्वघोस/बसुमित्र/वसुमित्र (अध्यक्ष)
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महत्त्वपूर्ण तथ्य :
वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को 'महासांघिक' और जिन्होंने निकाला था उन्हें 'हीनसांघिक नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया।
सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया जिसमें भगवान बुद्ध के वचनों को संकलित किया गया। इस बौद्ध संगीति में पालि तिपिटक (त्रिपिटक) का संकलन हुआ। श्रीलंका में प्रथम शती ई.पू. में पालि तिपिटक को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया था। यही पालि तिपिटक अब सर्वाधिक प्राचीन तिपिटक के रूप में उपलब्ध है
महायान के सर्वाधिक प्रचीन उपलब्ध ग्रंथ 'महायान वैपुल्य सूत्र' है जिसमें प्रज्ञापारमिताएँ और सद्धर्मपुण्डरीक आदि अत्यंत प्राचीन हैं। इसमें 'शून्यवाद' का विस्तृत प्रतिपादन है।
हीनयान का आधार मार्ग आष्टांगिक है। वे जीवन को कष्टमय और क्षणभंगूर मानते हैं। इन कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा क्योंकि आपकी सहायता करने के लिए न कोई ईश्वर है, न.
न देवी और न ही कोई देवता। बुद्ध की उपासना करना भी हीनयान विरुद्ध कर्म है
हीनयान कई मतों में विभाजित था। माना जाता है कि इसके कुल अट्ठारह मत थे जिनमें से प्रमुख तीन हैं- थेरवाद (स्थविरवाद), सर्वास्तित्ववाद (वैभाषिक) और सौतांत्रिक।
महायान ने बुद्ध को ईश्वरतुल्य माना। सभी प्राणी बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं। दुःख है तो बहुत ही सहज तरीके से उनसे छुटकारा पाया जा सकता है। पूजा-पाठ भले ही न करें लेकिन प्रार्थना में शक्ति है और सामूहिक रूप से की गई प्रार्थना से कष्ट दूर होते हैं।
महायानियों ने ही संसारभर में बुद्ध की मूर्ति और प्रार्थना के लिए स्तूपों का निर्माण किया महायान भी कई मतों में विभाजित है। महायान अष्वघोष के ग्रंथों और नागार्जुन के माध्यमिक और असंग के योगाचार्य के रूप में महायान के विकसित रूप की स्थापना हुई।
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्धधर्म दो भागो हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया।
धार्मिक जुलुस का प्रारम्भ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारम्भ किया गया। बौद्धों का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसका महत्त्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।
बौद्धधर्म के त्रिरत्न है- बुद्ध, धम्म एवं संघ।
'विश्व दुखों से भरा है' का सिद्धांत बुद्ध ने उपनिषद् से लिया है।
बौद्धधर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान "पाली त्रिपिटक" प्राप्त होता है।
बौद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। इन्हे एशिया का ज्योति पुञ्ज (LIGHT OF ASIA) कहा जाता है। इनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था, इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे। माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवे दिन हो गयी थी। इनका लालन-पालन इनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया।
बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पाली में दिए थे।
इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे- बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन।
एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषो को आठ भागों में बाँटकर उन पर आठ स्तूपो का निर्माण कराया गया।
(उन आठ स्तूपो में से एक साँची का स्तूप,मध्य प्रदेश है।)
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इतिहास : 4 बौद्ध संगीति/शासनकाल/स्थान/अध्यक्ष
बौद्धधर्म में 4 बौद्ध संगीति हुई थी। यह किस समय, किसके शासनकाल में, किस स्थान और इनके अध्यक्ष कौन थे
ट्रिक- RVPK/AKAK
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[1]. प्रथम बौद्ध संगीति (483 ई.पू.)
अजातशत्रु (शासनकाल)
राजगृह (स्थान)
महाकश्यप (अध्यक्ष){
[2]द्वितीय बौद्ध संगीति (383 ई.पू.)
कालाशोक (शासनकाल
वैशाली (स्थान)
सबाकामी (अध्यक्ष)
[3]तृतीय बौद्ध संगीति (255 ई.पू.)
अशोक (शासनकाल)
पाटलिपुत्र (स्थान)
मोग्गलीपुत्त तिस्स (अध्यक्ष)
चतुर्थ बौद्ध संगीति (ई. की प्रथम शताब्दी)
कनिष्क (शासनकाल)
कुण्डलवन (स्थान)
अश्वघोस/बसुमित्र/वसुमित्र (अध्यक्ष)
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महत्त्वपूर्ण तथ्य :
वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को 'महासांघिक' और जिन्होंने निकाला था उन्हें 'हीनसांघिक नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया।
सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया जिसमें भगवान बुद्ध के वचनों को संकलित किया गया। इस बौद्ध संगीति में पालि तिपिटक (त्रिपिटक) का संकलन हुआ। श्रीलंका में प्रथम शती ई.पू. में पालि तिपिटक को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया था। यही पालि तिपिटक अब सर्वाधिक प्राचीन तिपिटक के रूप में उपलब्ध है
महायान के सर्वाधिक प्रचीन उपलब्ध ग्रंथ 'महायान वैपुल्य सूत्र' है जिसमें प्रज्ञापारमिताएँ और सद्धर्मपुण्डरीक आदि अत्यंत प्राचीन हैं। इसमें 'शून्यवाद' का विस्तृत प्रतिपादन है।
हीनयान का आधार मार्ग आष्टांगिक है। वे जीवन को कष्टमय और क्षणभंगूर मानते हैं। इन कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा क्योंकि आपकी सहायता करने के लिए न कोई ईश्वर है, न.
न देवी और न ही कोई देवता। बुद्ध की उपासना करना भी हीनयान विरुद्ध कर्म है
हीनयान कई मतों में विभाजित था। माना जाता है कि इसके कुल अट्ठारह मत थे जिनमें से प्रमुख तीन हैं- थेरवाद (स्थविरवाद), सर्वास्तित्ववाद (वैभाषिक) और सौतांत्रिक।
महायान ने बुद्ध को ईश्वरतुल्य माना। सभी प्राणी बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं। दुःख है तो बहुत ही सहज तरीके से उनसे छुटकारा पाया जा सकता है। पूजा-पाठ भले ही न करें लेकिन प्रार्थना में शक्ति है और सामूहिक रूप से की गई प्रार्थना से कष्ट दूर होते हैं।
महायानियों ने ही संसारभर में बुद्ध की मूर्ति और प्रार्थना के लिए स्तूपों का निर्माण किया महायान भी कई मतों में विभाजित है। महायान अष्वघोष के ग्रंथों और नागार्जुन के माध्यमिक और असंग के योगाचार्य के रूप में महायान के विकसित रूप की स्थापना हुई।
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्धधर्म दो भागो हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया।
धार्मिक जुलुस का प्रारम्भ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारम्भ किया गया। बौद्धों का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसका महत्त्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।
बौद्धधर्म के त्रिरत्न है- बुद्ध, धम्म एवं संघ।
'विश्व दुखों से भरा है' का सिद्धांत बुद्ध ने उपनिषद् से लिया है।
बौद्धधर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान "पाली त्रिपिटक" प्राप्त होता है।
बौद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। इन्हे एशिया का ज्योति पुञ्ज (LIGHT OF ASIA) कहा जाता है। इनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था, इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे। माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवे दिन हो गयी थी। इनका लालन-पालन इनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया।
बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पाली में दिए थे।
इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे- बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन।
एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषो को आठ भागों में बाँटकर उन पर आठ स्तूपो का निर्माण कराया गया।
(उन आठ स्तूपो में से एक साँची का स्तूप,मध्य प्रदेश है।)
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