जीएसएलवी मार्क 3 से जुड़ी खास बातें...
- 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
- नाम है जीएसएलवी मार्क 3 जो पूरी तरह भारत में बना है
- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है.
- अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा
- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.
कैसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
- उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
- उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
- उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
- भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा.
- 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
- नाम है जीएसएलवी मार्क 3 जो पूरी तरह भारत में बना है
- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है.
- अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा
- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.
कैसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
- उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
- उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
- उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
- भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा.
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