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पूर्वी या पूर्वांचल पहाड़ियाँ नोट्स
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दिहांग गॉर्ज के बाद हिमालय दक्षिण की ओर मुड़ जाता है और भारत की पूर्वी सीमा का निर्धारण करता है| हिमालय के इस भाग को ‘पूर्वी या पूर्वांचल पहाड़ियाँ’ कहा जाता है| डफला, अबोर, मिश्मी, पटकई बूम, नागा, मणिपुर, गारो, ख़ासी, जयंतिया व मिज़ो पहाड़ियाँ पूर्वांचल की पहाड़ियों का ही भाग हैं|
पूर्वांचल की प्रमुख पहाड़ियाँ
डफला पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ तेजपुर और उत्तरी लखीमपुर के उत्तर में अवस्थित हैं और पश्चिम में ये अका पहाड़ियों व पूर्व में अबोर पहाड़ियों से घिरी हुई हैं|
अबोर पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ भारत के सुदूर उत्तर-पूर्व में चीन व भारत की सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश में स्थित हैं| इन पहाड़ियों की सीमा पर मिश्मी और मिरी पहाड़ियाँ स्थित हैं| ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी दिबांग इस क्षेत्र में ही प्रवाहित होती है|
मिश्मी पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ हिमालय के दक्षिणी विस्तार के सहारे पायी जाती हैं और इनका पूर्वी व उत्तरी भाग चीन की सीमा को स्पर्श करता है|
पटकई बूम पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ भारत व म्यांमार की सीमा के सहारे विस्तृत हैं और इनका निर्माण हिमालय की उत्पत्ति के दौरान ही मेसोजोइक कल्प में विवर्तनिक गतिविधियों से हुआ है| हिमालय के समान यहाँ भी तीव्र ढाल, नुकीली चोटियाँ व गहरी घाटियाँ पायी जाती हैं|
नागा पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ भारत व म्यांमार की सीमा का निर्माण करती और और इनका विस्तार भारत के नागालैंड राज्य में पाया जाता है|
मणिपुर पहाड़ियाँ: इन पहाड़ियाँ का विस्तार मुख्यतः मणिपुर राज्य में मिलता है और पश्चिम में ये असम राज्य, दक्षिण में मिजोरम, पूर्व में म्यांमार देश व उत्तर में नागालैंड राज्यों से घिरी हुई हैं |
मिज़ो पहाड़ियाँ: दक्षिण-पूर्वी मिजोरम राज्य में स्थित इन पहाड़ियों को पूर्व में ‘लुशाई पहाड़ियों’ के नाम से जाना जाता था| ये पहाड़ियाँ अराकान योमा तंत्र के उत्तरी भाग का निर्माण करती हैं|
त्रिपुरा पहाड़ियाँ: ये पहाड़ियाँ त्रिपुरा राज्य में अवस्थित हैं| ये उत्तर से दक्षिण समानान्तर वलनों की एक श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई दक्षिण की ओर घटती जाती है और अंततः गंगा-ब्रह्मपुत्र निम्नभूमि में जाकर मिल जाती है|
मीकिर पहाड़ियाँ: असम के काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क के दक्षिण में ये पहाड़ियाँ स्थित हैं और कार्बी-आंगलांग पठार का एक हिस्सा हैं| इस क्षेत्र में धनसिरी व जमुना नदियाँ प्रवाहित होती हैं|
गारो पहाड़ियाँ: मेघालय राज्य में स्थित इन पहाड़ियों को पृथ्वी के सर्वाधिक आर्द्र स्थानों में से एक माना जाता है| नोकरेक इसकी सबसे ऊंची चोटी है|
ख़ासी पहाड़ियाँ: मेघालय राज्य में स्थित इन पहाड़ियों का नाम ख़ासी जनजाति के नाम पर रखा गया है, जोकि इस क्षेत्र में निवास करती हैं| चेरापूँजी, जोकि विश्व का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है, पूर्वी ख़ासी पहाड़ियों में ही स्थित है और शिलांग के पास स्थित लूम-शिलांग सबसे ऊंची चोटी है|
जयंतिया पहाड़ियाँ: ये मुख्य रूप से मेघालय राज्य में गारो पहाड़ियों के पूर्व में स्थित हैं|
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भारत का भौतिक विभाजन
भारत में लगभग सभी प्रकार के भौगोलिक उच्चावच पाये जाते हैं| इसका कारण भारत का वृहद विस्तार व तटीय अवस्थिति है| भौगोलिक रूप से भारत को पाँच इकाईयों में बांटा जाता है:
उत्तर का महान पर्वतीय भाग
उत्तरी भारतीय मैदान
प्रायद्वीपीय पठार
तटीय मैदान
द्वीप
भारत का प्रशासनिक विभाजन
उत्तर का महान पर्वतीय भाग
उत्तर के महान पर्वतीय भाग को दो भागों में बांटा जाता है-
1. ट्रांस हिमालय
2. हिमालय
ट्रांस हिमालय पर्वतीय भाग हिमालय के उत्तर में स्थित है, जिसमें काराकोरम, लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणियाँ शामिल हैं| इस पर्वतीय क्षेत्र की चौड़ाई 150 किमी. से 400 किमी. के बीच पायी जाती है| विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, K-2 (गॉडविन आस्टिन) सहित कुछ अन्य सबसे ऊँची पर्वत चोटियाँ पायी जाती हैं| काराकोरम में बाल्टोरो और सियाचिन जैसे वृहद ग्लेशियर पाये जाते हैं|
सिंधु नदी से लेकर दिहांग या सिंधु नदी तक के पर्वतीय भाग को हिमालय श्रंखला कहा जाता है| हिमालय का अर्थ होता है- ‘हिम का घर’| हिमालय पर्वत श्रंखला का निर्माण तृतीयक कल्प/टर्शियरी युग में अवसादों के मुड़ने से वलित पर्वतों के रूप में हुआ है| प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार हिमालय का निर्माण भारतीय प्लेट और यूरोपीय प्लेट के आपस में टकराने और संभवतः भारतीय प्लेट के यूरोपीय प्लेट के नीचे धँसने के कारण अवसादों के मुड़ने से हुआ है| इसीलिए हिमालय को ‘नवीन वलित पर्वत श्रंखला’ कहा जाता है|
हिमालय में उत्तर से दक्षिण तीन समानान्तर पर्वत श्रेणियाँ पायी जाती हैं, जिनकी ऊँचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है| इन श्रेणियों के नाम हैं:
1. ‘वृहत हिमालय’ या ‘हिमाद्रि’
2. ‘मध्य हिमालय’ ‘हिमाचल’ या ‘लघु हिमालय’
3. ‘शिवालिक’
हिमालय की सबसे उत्तरी श्रेणी को ‘वृहत हिमालय’ या ‘हिमाद्रि’ के नाम से जानते हैं| यह हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है, जिसकी औसत ऊँचाई 6000 मी. है| इसी श्रेणी में भारत की सर्वोच्च चोटी ‘कंचनजुंगा’ (सिक्किम) स्थित है और इसी श्रेणी में नेपाल में विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी ‘एवरेस्ट’ (8,848 मी.) स्थित है|
वृहद हिमालय श्रेणी के दक्षिण में स्थित हिमालयी पर्वत श्रेणी को ‘मध्य हिमालय’, ‘हिमाचल’ या ‘लघु हिमालय’ कहा जाता है| इसकी औसत ऊँचाई 4000-4500 मी. है| डलहौजी, शिमला, धर्मशाला, मसूरी जैसे पर्वतीय पर्यटक स्थल इसी श्रेणी में स्थित हैं|इनकी ढालों पर वन व घास के मैदान पाये जाते हैं|इसकी औसत चौड़ाई लगभग 80 किमी. है|
लघु हिमालय के दक्षिण में हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी को ‘शिवालिक’ कहा जाता है| यह हिमालय की सबसे निचली पर्वत श्रेणी है, जिसकी औसत ऊँचाई 1200-1500 मी. के बीच है| इस श्रेणी का निर्माण अवसादी चट्टानों, असंगठित पत्थरों व सिल्ट से हुआ है|यह पश्चिम से पूर्व तक लगातार विस्तृत न होकर पूर्व में अन्य श्रेणियों से मिल जाती है| इसकी चौड़ाई 10-50 किमी. के बीच पायी जाती है| इस श्रेणी में पायी जाने वाली कुछ संकरी घाटियों को ‘दून’ कहा जाता है, जैसे-देहारादून इसी तरह की एक घाटी में स्थित शहर है|
म्यांमार की सीमा के सहारे विस्तृत हिमालय के पूर्वी विस्तार को ‘पूर्वान्चल की पहाड़ियाँ’ कहा जाता है| पूर्वान्चल में पटकई बूम, गारो-ख़ासी-जयंतिया, लुशाई हिल्स, नागा हिल्स और मिज़ो हिल्स जैसी हिल्स शामिल हैं|
उत्तरी भारतीय मैदान
उत्तर के महान पर्वतीय भाग के दक्षिण में ‘उत्तरी भारतीय मैदान’ पाया जाता है| हिमालय के निर्माण के समय शिवालिक के दक्षिण में एक खाई का निर्माण हो गया था, जिसमें गंगा और ब्रह्मपुत्र की नदियों द्वारा लाये गए अवसादों के निक्षेपण से भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ है| यह मैदान पश्चिम में सतलज नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग 2500 किमी. की लंबाई में फैला हुआ है| इसका निर्माण नदी द्वारा लाये गए जलोढ़ से हुआ है, इसीलिए यह भारत के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र हैं| इस मैदान की पुरानी जलोढ़ को ‘बांगर’ कहा जाता है और नवीन जलोढ़ को ‘खादर’ कहा जाता है| पश्चिम से पूर्व की ओर इस मैदान की चौड़ाई कम होती जाती है| भारत के उत्तरी मैदान को वृहद रूप से निम्नलिखित दो उप-भागों में बांटा जाता है:
1. गंगा का मैदान
2. ब्रह्मपुत्र का मैदान
यह दोनों मैदान एक सँकरे भाग द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं|
प्रायद्वीपीय पठार
उत्तर भारतीय मैदान के दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार स्थित है, जोकि भारत का सर्वाधिक प्राचीन भाग है| भारत का प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवानालैंड का हिस्सा है, जो गोंडवानालैंड के विभाजन के बाद उत्तर की ओर खिसककर अपने वर्तमान स्वरूप में आ गया है| इसका निर्माण प्राचीन व कठोर आग्नेय चट्टानों से हुआ है|
प्रायद्वीपीय पठार को वृहद रूप से दो मुख्य भागों में बांटा जाता है:
1. मध्य उच्चभूमि
2. दक्कन का पठार
विंध्य पर्वतों के उत्तर में स्थित प्रायद्वीप के उत्तरी भाग को ‘मध्य उच्चभूमि’ के नाम से जाना जाता है| यह उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में गंगा के मैदान से घिरा हुआ है| मध्य उच्चभूमि को भी पश्चिम से पूर्व विभिन्न पठारों में बांटा गया है:
मध्य उच्चभूमि के पश्चिमी भाग को ‘मालवा पठार’ के नाम से जाना जाता है तथा पूर्वी भाग को ‘छोटानागपुर के पठार’ के नाम से जाना जाता है और इन दोनों के मध्य में ‘बुंदेलखंड’ व ‘बघेलखंड का पठार’ पाया जाता है|
दक्कन के पठार का विस्तार उत्तर में विंध्य पर्वत से लेकर प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे तक है| यह पश्चिम में ‘पश्चिमी घाट’ और पूर्व में ‘पूर्वी घाट’ से घिरा हुआ है| पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट अधिक सतत व ऊँचा है| पश्चिमी घाट में सहयाद्रि, नीलगिरी, अन्नामलाई व कार्डमम पहाड़ियाँ शामिल हैं| पश्चिमी घाट की ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है| भारतीय प्रायद्वीप की सबसे ऊँची चोटी ‘अन्नामलाई’ है, जिसकी ऊँचाई 2695 मी. है|
दक्कन के पठार का उत्तर-पश्चिमी भाग लावा प्रवाह से बना हुआ है, जिसे ‘दक्कन ट्रेप’ कहते हैं| उत्तर की ओर प्रवाहित होने के दौरान प्रायद्वीपीय पठार पर दरारी ज्वालामुखी की क्रिया हुई और दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ| दक्कन ट्रेप लगभग सम्पूर्ण महाराष्ट्र तथा गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पाया जाता है|
प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांध नदियां, जैसे-गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि पूर्व की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती हैं, लेकिन नर्मदा व तापी जैसी प्रायद्वीपीय नदियां पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में जाकर गिरती हैं|
तटीय मैदान
दक्कन का पठार दोनों ओर से तटीय मैदानों से घिरा हुआ है| पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक व केरल राज्यों के सहारे विस्तृत है| पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर में सर्वाधिक चौड़ा है और दक्षिण की ओर जाने पर यह संकरा होता जाता है| महाराष्ट्र के तटीय मैदान को ‘कोंकण तट’ कहा जाता है और केरल के तटीय मैदान को ‘मालाबार तट’ कहा जाता है| पश्चिमी तटीय मैदान में नर्मदा व तापी नदियों के ज्वारनदमुख, केरल की लैगून झीलें पायी जाती हैं|
पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तट की तुलना में अधिक चौड़ा व समतल है, जो अनेक बड़ी-बड़ी प्रायद्वीपीय नदियों के डेल्टाओं के द्वारा विच्छेदित हो गया है| उत्तर में यह मैदान गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान से जाकर मिल जाता है| पूर्वी तट के उत्तरी तटीय मैदान को ‘उत्तरी सरकार’ व दक्षिण में तमिलनाडु के सहारे विस्तृत तटीय मैदान को ‘कोरोमंडल तट’ कहा जाता है|
द्वीप
केरल तट के पश्चिम में अनेक छोटे-छोटे द्वीप पाये जाते हैं, जिन्हें सम्मिलित रूप से ‘लक्षद्वीप’ कहा जाता है| इन द्वीपों की उत्पत्ति स्थानीय आधार पर हुई है और इनमें से अधिकांश प्रवाल द्वीप हैं| बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीपों को सम्मिलित रूप से ‘अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह’ कहा जाता है| ये द्वीप आकार में बड़े होने के साथ-साथ संख्या में भी अधिक हैं| इनमें से कुछ द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया से हुई है,जबकि अन्य द्वीपों का निर्माण पर्वतीय चोटियों के सागरीय जल में डूबने से हुआ है| भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु, जिसे ‘इन्दिरा प्वाइंट’ कहा जाता है और जो 2005 में आई सूनामी के कारण डूब गया था, ग्रेट निकोबार द्वीप में स्थित है|
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भारत की खनिज पेटियाँ
भारत विश्व के खनिज सम्पन्न देशों में से एक है| भारत की खनिज संपन्नता का एक मुख्य कारण यह है कि यहाँ प्राचीन से नवीन तक लगभग सभी क्रम की चट्टानें पायी जाती हैं| भारत के अधिकतर धात्विक खनिजों की प्राप्ति धारवाड़ क्रम की चट्टानों से होती है और कोयला मुख्य रूप से गोंडवाना क्रम की चट्टानों में मिलता है| भारतीय प्रायद्वीप कठोर प्राचीन चट्टानों से निर्मित है और इसीलिए भारत के अधिकतर धात्विक खनिजों खनिजों की प्राप्ति इसी क्षेत्र से होती है, जबकि उत्तर भारतीय मैदान जलोढ़ निर्मित होने के कारण धात्विक खनिजों की दृष्टि लगभग महत्वहीन है| भारत में पेट्रोलियम की प्राप्ति आंतरिक अवसादी चट्टानों व तटीय क्षेत्रों से की जाती है|
भारत विश्व के खनिज सम्पन्न देशों में से एक है, लेकिन भारत के सभी क्षेत्रों में खनिज नहीं पाये जाते हैं| भारत के खनिज कुछ खास क्षेत्रों में ही पाये जाते हैं और खनिज सम्पन्न इन क्षेत्रों को ‘भारत की खनिज पेटियाँ’ कहा जाता है| भारत में मुख्य रूप से उत्तरी-पूर्वी पठारी क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिम पठारी क्षेत्र और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र नाम की खनिज पेटियाँ पायी जाती हैं|
उत्तरी-पूर्वी पठारी क्षेत्र
इसमें छोटानागपुर का पठारी क्षेत्र (झारखंड),ओडिशा, पश्चिम बंगाल व छत्तीसगढ़ के खनिज सम्पन्न भाग शामिल हैं| इस क्षेत्र में विविध खनिज मिलते हैं, लेकिन उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण धात्विक खनिज, जैसे-लोहा, बाक्साइट व मैंगनीज आदि, हैं| धात्विक खनिज और कोयले की उपलब्धता के कारण यहाँ भारी उद्योगों का काफी विकास हुआ है|
दक्षिण-पश्चिम पठारी क्षेत्र
यह पेटी कर्नाटक, गोवा ,केरल और तमिलनाडु तक विस्तृत है| इस पेटी में उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क, मैंगनीज व चूना पत्थर पाया जाता है| इसके अलावा केरल में मोनाजाइट निक्षेप पाये जाते हैं| यह पेटी खनिजों के मामले उतनी विविधतापूर्ण नहीं है जितनी कि उत्तर-पूर्वी पेटी| यहाँ कोयले का लगभग अभाव पाया जाता है, केवल तमिलनाडु के नेवेली में ही निम्न गुणवत्ता वाला लिग्नाइट कोयला पाया जाता है|
उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
इस पेटी का विस्तार राजस्थान में अरावली से लेकर गुजरात तक है| यहाँ धारवाड़ क्रम कि चट्टानों से खनिजों कि प्राप्ति होती है| इस पेटी में जस्ता, तांबा मुख्य खनिज हैं, इसके अलावा संगमरमर, चुना पत्थर, बलुआ पत्थर, जिप्सम, ग्रेनाइट आदि इमारती पत्थर भी यहाँ से प्राप्त होते हैं| चूना पत्थर व डोलोमाइट की उपलब्धता के कारण यहाँ सीमेंट उद्योग का विकास हुआ है और जस्ते व तांबे की उपलब्धता के कारण प्रगलन संयंत्रों की स्थापना की गयी है| गुजरात व राजस्थान के बेसिनों से पेट्रोलियम खनिजों की भी प्राप्ति होती है|
ऊपर वर्णित तीन प्रमुख खनिज पेटियों के अलावा भी भारत में खनिज मिलते हैं लेकिन उनका महत्व खनिज पेटी के रूप में न होकर एकल खनिज क्षेत्र के रूप में ही अधिक है, उदाहरण के लिए,असम व मुंबई हाई से पेट्रोलियम की प्राप्ति, हिमालयी क्षेत्र से तांबे, कोयले, कोबाल्ट आदि की प्राप्ति, कृष्णा व गोदावरी बेसिन से प्राकृतिक गैस की प्राप्ति|

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